positive and negative thinking: best success story।

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आपके जीवन में सकारात्मक और नकारात्मक सोच के बीच का फर्क। positive and negative thinking: best success story।

सबसे नकारात्मक प्रभाव।

ओस्पेनस्की के अनुसार नकारात्मक भावनाओं के अलावा गुस्से, अफसोस, शत्रुता, ईर्ष्या और हताशा की शुरुआत करने वाली एक बड़ी वजह है, किसी को दोषी ठहराना।

दोषारोपण के ही कारण गुस्से की शुरुआत होती है, जो सबसे खराब नकारात्मक भावना है। इस दुनिया में गुस्से से ज्यादा विनाशकारी कोई ताकत नहीं। बेकाबू गुस्सा तो स्वास्थ्य, रिश्ते, परिवार, कारोबार, और समाज तक हो भी खत्म कर देता है। और युद्धों, क्रांतियों व सामाजिक तनाव का भी मुख्य जनक है।

positive and negative thinking: best success story। गुस्से की मुख्य वजह तो बचपन से मिली विध्वंसक आलोचना ही है। जब कभी भी किसी व्यक्ति की आलोचना की जाती है। तो उसकी प्रतिक्रिया ऐसी ही होती है। मानो उस पर किसी ने हमला बोल दिया हो। वह बचाव करता है, और असंतोष का इजहार भी क्योंकि किसी भी व्यवहार को बार-बार दोहराने से वह आपकी आदत में शुमार हो जाता है।

इसलिए धीरे-धीरे आप हर समस्या नाकामी या हताशा की स्थिति में गुस्से के जरिए ही प्रतिक्रिया देने के आदी हो जाते हैं। अंततः बात एक ऐसे मुकाम पर पहुंच जाती है कि आप हर वक्त किसी न किसी बात को लेकर गुस्से में रहने लग जाते हैं।

गुस्सा होने के लिए किसी व्यक्ति को, किसी दूसरे को ऐसी बात के होने या ना होने के लिए दोषी ठहराना पड़ता है, जिसे वह पसंद नहीं करता है, या नहीं मानता।

positive and negative thinking: best success story।    कुछ लोग तो दूसरों को दोषी ठहराने में ही इतने ज्यादा व्यस्त रहते हैं, कि उनका वास्तविकता से नाता ही टूट जाता है। वे पूरी दुनिया को दोष देने वाले ही नजरिए से देखने लग जाते हैं। और उनके साथ होती हैं भावनाएं और अपराध बोध।

जब कभी भी कोई समस्या होती है निजी या आम गुस्से में रहने वाला व्यक्ति, अपने आप तय कर लेता है। कि किसी को तो इसका दोष दिया ही जाना चाहिए।

फिर वह अपना वक्त और भावनाएं कई लोगों पर दोष मढ़ने में ही झोंक देता है। दोषारोपण और गुस्से से यह अलगाव असंतोष और ईर्ष्या को जन्म देता है। बाद में यह उस व्यक्ति को ही पूरी तरह से लील जाते हैं।

दोषी कोई नहीं। positive and negative thinking: best success story।

यहां पर एक सर्वसामान्य उदाहरण पेश है। प्यार करने वाले दो लोग शादी कर लेते हैं। दोनों के ही इरादे नेक थे, और भविष्य को लेकर काफी ऊंची अपेक्षाएं भी थीं। वरना वे दोनों एक दूसरे से शादी ही नहीं करते।

दुर्भाग्यवश लोग और परिस्थितियां वक्त के साथ बदल जाती हैं। यही दंपति कुछ समय के बाद पाते हैं कि वह साथ रहकर अब खुश नहीं है। और तलाक लेने का फैसला कर लेते हैं। लेकिन यह तो समस्या की शुरुआत भर होती है।

वयस्कों की तरह एक दूसरे से सहमति की जगह, वे एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गए हैं। जहां वे विरोधी स्वभाव के हो गए हैं, और वे अब और साथ साथ रहना नहीं चाहते हैं। ऐसे में दोष का निर्धारण जरूरी है।

दोनों में से एक तो दोषी होगा ही जिसका दोष है उसे सजा भी दी जानी चाहिए। लेकिन अब वकीलों और न्यायाधीशों को भी हस्तक्षेप करना पड़ेगा। जासूसों और मुनिमों को काम से लगा दिया जाता है।

ताकि सामने वाले पर कीचड़ उछाला जा सके। हालात बिगड़ते ही जाते हैं, और अंततः मामला गुस्से, कड़वाहट, आरोपों और यहां तक की घृणा के साथ खत्म होता है।

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जब कोई वैवाहिक संबंध या रिश्ता नहीं निभ पाता, तो सबसे बेहतर यही होगा। कि इसे एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई के तौर पर स्वीकारा जाना चाहिए। दोनों ही पक्षों के लिए एक समान रियायतें दी जानी चाहिए।

और फिर दोनों को ही अपने-अपने तरीके से जिंदगी जीने का हक दे दिया जाना चाहिए। कई दंपत्ति आजकल परंपरागत तलाक की कड़वाहट की बजाय समझौते के इस रास्ते को अपना रहे हैं। परिणाम मामले से जुड़े हर एक के लिए अच्छे ही होते हैं।

यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है, कि अधिकांश लोगों को यही लगता है। कि वे जो भी कर रहे हैं वही सही है। लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति दूसरे को दोषी ठहरा कर उस पर गलती स्वीकारने के लिए दबाव डालता है। तो भावनात्मक और कानूनी लड़ाई शुरू हो जाती है।

कानूनी लड़ाई का सबसे दुखद पहलू यह है, कि यह आमतौर पर उसी बिंदु पर खत्म होती है। जहां से शुरू हुई थी और इससे किसी को भी फायदा नहीं होता।

ज़िम्मेदारी को स्वीकारें। positive and negative thinking: best success story।

हर किस्म की गुस्से से निजात पाने के लिए सबसे बढ़िया तरीका है, जिम्मेदारी को स्वीकारना। जैसे ही आप किसी घटना की जिम्मेदारी को स्वीकार लेते हैं। गुस्से की हवा ही निकल जाती है।

गुस्से को पनपने के लिए लगने वाली सारी ऊर्जा की आपूर्ति एकदम से बंद हो जाती है। जैसे ही आप कहते हैं इसके लिए मैं जिम्मेदार हूं। गुस्से का बवाल शांत हो जाता है। प्रतिस्थापन के नियम, और इस हकीकत के कारण की दिमाग एक वक्त में एक ही विचार को रख सकता है।

आप किसी बात की जिम्मेदारी को स्वीकारने, और उसी बात के लिए गुस्से को एक साथ नहीं कर सकते। आपके सारे गुस्से की जड़, दोषारोपण की सोच ही जिम्मेदारी को स्वीकार लेने के कारण खत्म हो जाती है।

सकारात्मक बनाम नकारात्मक नज़रिया।

सकारात्मक नजरिया: अपनी दुनिया की ओर देखने के मूल तौर पर दो नजरिए हैं। दुनिया को देखने का आपका नजरिया सकारात्मक और परोपकारी हो सकता है। या फिर नकारात्मक और दुर्भावना पूर्ण।

जब आप अपने लिए और अपने साथ होने वाली बातों के लिए जिम्मेदारी स्वीकारते हैं, तो आप सकारात्मक बन जाते हैं। आप दुनिया को परोपकारी नजरों से देखने लगते हैं। आपका अपने और अपने भीतर छिपी संभावनाओं के प्रति नजरिया सकारात्मक हो जाता है। आप एक खुशनुमा और ज्यादा प्रभावशाली व्यक्ति बन जाते हैं।

नकारात्मक नज़रिया: इसके ठीक विपरीत जब आप दुनिया को नकारात्मक और दुर्भावना भरी नजरों से देखते हैं। तो आपको हर तरफ समस्याएं और अन्याय ही दिखाई देगा। आप केवल शोषण और बुराई को ही देख सकेंगे।

आप संभावनाओं और उम्मीदों की बजाय बाधाएं और बुराई ही देख सकेंगे। सबसे बुरी बात तो यह होगी कि आपका अधिकतम वक्त सारी समस्याओं के लिए दूसरे लोगों और संस्था को दोष देने में ही बेकार चला जाएगा।

परिणामों में अन्तर। positive and negative thinking: best success story।

उदाहरण के लिए: हमारे देश में कुछ लोगों का जीवन स्तर दूसरों से अच्छा है। यह तो मानव इतिहास में सभी समाजों के लिए सच कहा जा सकता है। इसके कई कारण हो सकते हैं।

यह अलग-अलग लोगों में अलग-अलग प्रतिभा महत्वाकांक्षाओं और ख्वाहिशों के कारण भी हो सकता है। यह कुछ लोगों द्वारा ज्यादा मेहनत, बेहतर शुरुआत, जन्मजात विलक्षण प्रतिभा, या फिर किसी भी अर्थव्यवस्था के सबसे अच्छे वक्त में सही जगह पर होने के कारण भी हो सकता है।

किसी को दोषी न ठहराएं।

किसी भी परिस्थिति में जो लोग अच्छी स्थिति में हैं। उन्हें किसी भी कारण से लोगों के खराब स्थिति में होने का कारण ठहराने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।

इसी तरह स्वस्थ लोगों को दूसरे लोगों के अस्वस्थ होने के लिए दोष देने से कुछ नहीं मिलता। नाकाम और दुखी लोगों के लिए उन लोगों को कतई दोष नहीं देना चाहिए जो की कामयाब और संतुष्ट हैं।

अगर दूसरे लोग कुछ नहीं कर रहे। तो उन लोगों को दोष नहीं दिया जाना चाहिए, जो अपने और अपने परिवार को बेहतर जीवन देने का प्रयास कर रहे हैं।

माफ़ करने की ताकत।

किसी भी व्यक्ति के मन में दूसरे के प्रति गुस्से, असंतोष, भय, शक, शत्रुता, ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावना इसलिए आती हैं। कि हमने ऐसे व्यक्ति को माफ करने की ताकत गवा दी है। जिसने हमारी राय में हमें किसी न किसी तरह से नुकसान पहुंचाया है।

बचपन में बड़े होने के दौरान, हम एक ऐसे दौर से गुजरते हैं। जब न्याय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। हम “न्यायपूर्ण” के विचार पर अटक से जाते हैं। हम जिंदगी में ऐसी हर परिस्थिति पर विचलित हो जाते हैं। जो हमारी सोच के मुताबिक न्यायपूर्ण और किसी के लिए भी न्याय संगत नहीं है।

खास तौर पर तब जब बात हमारी ही हो। जब कभी भी हम देखते हैं, कि हमारे या किसी दूसरे के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार हुआ है। कारण चाहे जो हो हम इसे अपने आप पर हमले की तरह है ले लेते हैं।

हमारे कमजोर आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है हम गुस्से और असंतोष भरी प्रतिक्रिया देते हैं। कुछ लोगों की सोच इसी उम्र में अटककर रह जाती है, और इससे आगे बढ़ ही नहीं पाती।

अगर हमें बचपन से ही अपनी शिकायतों के निपटारे का महत्व नहीं समझाया गया। तो जब हम बड़े होंगे हमारे पास ना भूलने वाले अनुभवों का अंबार होगा। अगर हमने एहतियाद नहीं बरती।

तो हम ऐसे लोगों के प्रति अपने गुस्से के इर्द-गिर्द ही अपने जीवन को आगे बढ़ाएंगे। जो हमारी नजर में किसी बात के लिए दोषी हैं। या हम जिन्हे पसंद नहीं करते कई मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों का तो पूरा करियर ही लोगों को गुजरे हुए कल की कटु स्मृतियां और वर्तमान के अनुभवों से उभरने और उनका सामना करने में गुजर जाता है।

अपनी ताक़त का अनुभव।

अगर आपको एक ताकतवर और हमेशा के लिए निश्चित कर देने वाला अनुभव चाहिए। तो हर उस व्यक्ति को माफ कर दें जिसने किसी भी तरीके से आपको नुकसान पहुंचाया हो।

अपने दिमाग में कैद दूसरे व्यक्ति को माफी के जरिए आजाद करके आप खुद आजाद हो सकेंगे। यही वजह है कि अधिकांश धर्मों में क्षमा को ही मानसिक शांति और धरती पर स्वर्ग जैसे आनंद की ओर पहला कदम बताया गया है।

जरा सोचिए कि आपको कैसा लगेगा, अगर आपके मन में दुनिया में किसी के लिए भी कोई गुस्सा ना हो। कल्पना कीजिए कि आप पूरी तरह से सकारात्मक आशावादी, उल्लासित, और ऐसे व्यक्ति हैं। जिसकी अपने प्रति धारणा और उत्साह का स्तर ऊंचा है।

और जिसके आत्मविश्वास की कोई भी सीमा नहीं है, एक ऐसे गर्मजोश दास्तां चाहने लायक इंसान के तौर पर अपनी कल्पना कीजिए। जो सुकून और आत्मिक शांति से भरपूर हो। यह सब तभी संभव है जब लोगों को माफ करना आपकी आदत बन जाती है।

अपनी ही सोच में कैद होना। positive and negative thinking: best success story।

इसके विपरीत किसी को माफ करने से इनकार करना या उसमें नाकामी दरअसल नकारात्मक, गुस्से, तनाव, बेचैनी, मानसिक और शारीरिक बीमारी की जड़ है। और सबसे ज्यादा दुःख भी देती है।

किसी को माफ नहीं करके आप खुद को कैद सा कर लेते हैं। माफी आपको एकदम आजाद कर देती है। और हमेशा ही विकल्प आपको ही चुनना होता है। इसका दूसरे व्यक्ति या परिस्थिति से कोई भी लेना-देना नहीं होता है।

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