60+ apne hi dar per jeet hasil karne ke liye padhe success chanakya quotes ।अपने ही भय पर जीत हासिल करने के लिए पढ़े चाणक्य के प्रेरणादयक उद्धवरण।
भय मनुष्य को अपाहिज बना देता है, जो मनुष्य अपने ही भय से जीत गया वो कुछ भी कर सकता है। लेकिन जब तक भय के साए में है तब तक वह कुछ भी नहीं कर सकता। जो कुछ वह निडर होकर करता है, भय होने के बाद वो भी उसके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है।
भय के कई प्रकार होते हैं, जैसे: हार जानें का भय, पैसे चले जाने का भय, दोस्त बिछड़ जानें का भय, किसी के दिल टूट जानें का भय और भी बहुत कुछ। मनुष्य जिस भी प्रोफेशन में आगे बढने के लिए क़दम बढ़ाता है। तो सबसे पहले उसका सामना उस भय से होता है, जिसका उसे भय होता है। और भय सिर्फ सिर्फ इस बात का है कि मनुष्य जो भी करना चाहता है उसके बारे में उसे थोड़ा भी ज्ञान नहीं होता है। इसलिए कहा गया है कि विद्याहीन मनुष्य उस पुष्प के समान है जिसमें सुगन्ध नहीं होती।
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- भय से मनुष्य को तब तक डरना चाहिए जब तक वह नहीं आया, परंतु जब आ ही जाए तब निडर होकर उस पर प्रहार कर देना चाहिए।
- एक ही मां से और एक ही नक्षत्र में पैदा हुए दो बालकों में समान गुण नहीं होते, जैसे बेर और उसके कांटे।
- जिसका जिस वस्तु में प्रेम नहीं उसका उस वस्तु पर अधिकार भी नहीं। जो दिखावा नहीं करते वे श्रृंगार शोभा वाली वस्तुओं से प्रेम नहीं करेंगे। जो सांसारिक संघर्ष या ठोकरों से चतुर न होगा, वह मधुर वचन नहीं बोल सकता, और साफ-साफ खरी बात कहने वाला कपटी नहीं होता।
- मूर्ख लोग विद्वानों से, दरिद्र लोग धनी लोगों से, विधवा स्त्री सुहागिन स्त्री से, और वयस्क महिलाएं कुलवती स्त्रियों से सर्वदा वैर रखती हैं।
- आलस करने से विद्या, दूसरे के हाथों में चले जाने से धन, खेत में बीज कम डालने से खेत और बिना सेनापति के सेना नष्ट हो जाती है।
- विद्या अभ्यास से होती है सहनशीलता से कुल का बड़प्पन होता है, बड़प्पन की पहचान गुण से और कुपित होना नेत्र से जाना जाता है।
- धन से धर्म की रक्षा और अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है, राजा की रक्षा मधुरता (कोमलता) से, और सुलक्षणा स्त्री से घर (ग्रह) की रक्षा होती है।
- दरिद्रता का नाश दान से, दुर्गति का नाश सुशीलता से, दुरबुद्धि का नाश सद्बुद्धि से, और भय का नाश अच्छी भावना से होता है।
- काम के समान कोई रोग नहीं, मोह के समान कोई शत्रु नहीं, क्रोध के समान अग्नि नहीं और ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं।
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- यह निश्चित है कि मनुष्य अकेला ही जन्म लेता है, और मरता भी अकेला ही है, अकेले ही सुख दुख भोगता है, अकेले ही स्वर्ग जाता है, और अकेले ही परमधाम भी पता है। अर्थात इनमें कुछ भी एक साथ नहीं होता है।
- ब्रह्म को मानने वाले की दृष्टि में स्वर्ग व शूरवीर की दृष्टि में जीवन तृण समान है। जिसके बस में इंद्रियां हैं उसे स्त्री और निस्वार्थ को संपूर्ण जगत तृण समान है।
- परदेस में मित्र विद्या होती है, घर में मित्र स्त्री होती है, रोगियों का मित्र औषधि और मरने के बाद धर्म ही मित्र होता है।
- समुद्र में वर्षा का होना व्यर्थ ही है, जिसका पेट खाली न हो उसे भोजन देना व्यर्थ ही है और दिन में दीपक को जलाना व्यर्थ ही है।
- मेघ के जल समान दूसरा जल नहीं, आत्म बल के समान दूसरा बल नहीं, नेत्र ज्योति के समान दूसरा प्रकाश नहीं और अन्य के समान दूसरा प्रिय पदार्थ नहीं।
- निर्धन को धन की चाह, पशुओं को वाणी, मनुष्यों को स्वर्ग (ऐश्वर्य) की चाह और देवताओं को मोक्ष (मुक्ति) की इच्छा सदा रहती है।
- सत्य ही सब का कारण है सत्य से पृथ्वी स्थिर है सत्य से सूर्य तपता है और सत्य से वायु भी बहती है। अर्थात सत्य ही सबका मूल है।
- जन्माने वाला, यगोपवीत संस्कार कराने वाला, वेद अध्ययन कराने वाला, अन्य भोजन देने वाला, और भय में रक्षा करने वाला है। यह पांच प्रकार के पिता कहे गए हैं।
- राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी पत्नी की माता (सासु मां) और अपनी माता ये पांच माताएं कही गई हैं।
- मनुष्य शास्त्र को पढ़कर धर्म को जानता है, और शास्त्र को पढ़कर दुरबुद्धी का त्याग करता है, शास्त्र को पढ़कर ज्ञान प्राप्त करता है, तथा शास्त्र ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति करता है।
- राख से कांसे के बर्तन साफ होते हैं और खटाई से तांबे के बर्तन साफ होते हैं, मासिक धर्म होने से स्त्रियां शुद्ध होती हैं और तेज धारा के वेग से नदियों का पानी शुद्ध और साफ हो जाता है।
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- प्रजा की रक्षा के लिए भ्रमण करने वाला राजा सम्मानित होता है, और भ्रमण करने वाला नेता और भ्रमण करने वाले योगी साधु सब जगह पूजे जाते हैं। किंतु जगह जगह पर घूमने वाली स्त्रियां व्याभिचारिणी हो जाती हैं।
- जिस मनुष्य के पास धन है उसके पास मित्र बहुत हैं, जिसके पास धन है उसी के भाई बंधु भी बहुत होते हैं, जिसके पास धन है वहीं पुरुषों में श्रेष्ठ पुरुष है, और जिसके पास धन है वही पंडित अर्थात ज्ञानी पुरूष है। अर्थात धन ही सब कुछ है।
- जिस तरह का हुनर होता है, उसी प्रकार की बुद्धि भी पैदा होती है, और उसी प्रकार का व्यवसाय भी होता है एवं उसी प्रकार के सहायक भी मिलते हैं।
- काल संपूर्ण प्राणियों को खो जाता है और काल ही सब प्रजा का नाश कर देता है, काल गुप्त अवस्था में भी जागता रहता है, अर्थात काल का अतिक्रमण कोई नहीं कर सकता है।
- जीव स्वयं कर्म करता है स्वयं फल भोगता है स्वयं ही संसार में भ्रमण करता है और स्वयं ही मुक्त हो जाता है।
- राजा अपनी प्रजा का पाप और राजा का पाप पुरोहित भोगता है, स्त्री के किए हुए पाप को पति और शिष्य का पाप गुरु भोगता है।
- ऋणी पिता और व्याभिचारिणी माता यह दोनों शत्रु हैं, सुंदर पत्नी और मूर्ख पुत्र भी शत्रु ही होते हैं।
- लोभी को धन से बस में करें, अहंकारी को हाथ जोड़कर मूर्ख को उसके मन माफिक बर्ताव करके और विद्वान को सत्य से ही बस में करना चाहिए।
- राज्य ना रहे अच्छा है, पर दुष्ट राजा का राज्य होना अच्छा नहीं है, मित्र ना हो तो अच्छा है पर दुष्ट मित्र का होना अच्छा नहीं है, बिना शिष्य का रहना अच्छा है परंतु कुशिष्य का होना अच्छा नहीं है, पत्नी ना रहे तो अच्छा है पर दुष्ट पत्नी का होना अच्छा नहीं है।
- दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख प्राप्त नहीं होता, कुमित्र मित्र से शांति नहीं मिलती, दुष्चरित्र स्त्री से घर में प्रीत नहीं मिलती और दुष्ट शिष्य से यश कहां मिल सकता है।
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- काम छोटा हो या बड़ा उसको पूरा करने का प्रयत्न करना चाहिए यह एक गुण सिंह से सीखना चाहिए।
- इंद्रियों को बस में रखकर जैसे बगुला शिकार के लिए साधना करता है, उसी प्रकार विद्वान लोगों को काल और बल को समझ कर कार्य करना चाहिए। यह गुण बगुला से सीखिए।
- उचित समय पर जागना, रण से पीछे न हटना, बन्धुओं को संभाग देना और स्वयं आक्रमण करके अपने भोजन को लेना इन चारों बातों को मुर्गे से सीखें।
- मैथुन गुप्त स्थान में करना, समय-समय पर अभिष्ठों का संग्रह करना, सतर्क रहना, अधिक ढिकाई, किसी पर विश्वास न करना इन पांच गुणों को कौवे से सीखें।
- बहुत खाने की शक्ति रखें पर थोड़े भोजन पर संतुष्ट रहना, अच्छी और गाड़ी नींद सोने पर भी आहट होने पर जागना, स्वामी भक्ति, और वीरता इन छह गुणों को कुत्ते से सीखे।
- अत्यंत थक जाने पर भी अपने बोझ को ढोना, मौसम का विचार न करना, सदा संतुष्ट होकर विचारना इन तीनों गुणों को गधे से सीखे।
- जो मनुष्य इन सभी गुणों को ध्यान में रखकर इस प्रकार का आचरण करेगा वह सर्वदा सब कार्यों में विजय प्राप्त करेगा।
- धन के नास को मन के संताप को घर की बुराइयों को, किसी ठग द्वारा ठगे जाने को और नीचे द्वारा अपमान को बुद्धिमान कभी किसी से ना कहे।
- धन और अन्य के उचित स्थान पर प्रयोग में, पढ़ने के समय, भोजन के समय और अन्य व्यवहार में जो पुरुष संकोच नहीं रखेगा वह सदा सुखी रहेगा।
- शांत चित्त वाले लोगों को जो संतोष रूपी अमृत का सुख प्राप्त होता है, वह धन के लोभी मनुष्यों को जो धन के लिए इधर-उधर दौड़ते रहते हैं कभी प्राप्त नहीं होता।
- गाड़ी से पांच हाथ घोड़े से दस हाथ और हाथी से हजार हाथ दूर हट कर रहना चाहिए, दुष्ट पुरुष का त्याग देश या स्थान छोड़कर करना चाहिए।
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- हाथी को अंकुश से, घोड़ा को चाबुक से, सींग वाले जानवर को लाठी से, और दुष्ट जन को तलवार से मारना चाहिए। अर्थात इनको बस में करने के लिए यही साधन है।
- अपना बाहुबल ही राजा का बल है, ब्राह्मणों का बल वेद पाठ है, और स्त्री का बल रूप यौवन और मीठी बोली है।
- हमेशा सीधे स्वभाव में रहना अच्छा नहीं होता। बन में जाकर देखो सीधे वृक्ष ही काटे जाते हैं और टेढ़े वृक्ष खड़े ही रहते हैं।
- जिसके पास धन है उसी के मित्र हैं, धनी के ही बंधु हैं धनी ही लोक में सम्मानित पुरुष है, धनी ही संसार में मरने के बाद भी जीवित रहता है। अर्थात उसकी ही कीर्ति अमर होती है।
- अत्यधिक क्रोध, कटु वचन, दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीचों का साथ और नीचे कुल की सेवा यह सब दरिद्रता और असफलता की निशानी हैं।
- बिना विद्या के मनुष्य का जीवन कुत्ते की पूंछ के समान है। जो ना तो उसके गुप्त अंगों को ढकती है और ना ही काटते हुए मच्छरों को भगा सकती है। अर्थात विद्या बिना जीवन व्यर्थ है।
- सत्य ही वाणी की शुद्धि है, मन की शुद्धि इंद्रियों का संगम है, जीवो पर दया और पवित्रता यह परमार्थियों की शुद्धि है।
- अधम मनुष्य धन को चाहते हैं, मध्यम वर्ग के लोग धन और मान दोनों चाहते हैं, किंतु उत्तम वर्ग के लोग केवल मान चाहते हैं क्योंकि मान ही सब धन से बड़ा धन है।
- दीपक अंधकार को खाता है और काजल पैदा करता है ठीक उसी प्रकार जो जैसा अन्न खाता है उसी प्रकार का निर्वाहन करता है।
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- धन की अहमियत गुणवान समझता है दुष्चरित्र नहीं। जैसे समुद्र का खारा जल मेघ के मुंह में जाकर मीठा हो जाता है और पृथ्वी के चर अचर आदि जीवों को जीवन दान देकर करोड़ गुना होकर फिर उसी समुद्र में जा मिलता है।
- तेल लगाने पर, चिता का धुआं लगने पर, स्त्री को प्रसन्न करने पर अथवा बाल बनवाने पर मनुष्य तब तक चांडाल बना रहता है जब तक वह स्नान न करें।
- अपच होने पर पानी दवा है, पचने पर बल देने वाला है, भोजन के समय जल अमृत के समान और भोजन के अंत में जहर के समान फल देने वाला है।
- बिना क्रिया के ज्ञान व्यर्थ है, ज्ञान हीन मनुष्य मरा सा रहता है, सेनापति के बिना सेना नष्ट हो जाती है, और पति के बिना स्त्रियां नष्ट हो जाती हैं।
- बुढ़ापे में पत्नी का मरना, बंधु के साथ चला गया धन और दूसरे के बस का भोजन यह तीनों पुरुषों के लिए दुखदाई होते हैं।
- अग्नि के बिना वेद पढ़ना व्यर्थ है, दान के बिना यज्ञ आदि पूरे नहीं होते, बिना भाव के सिद्धि प्राप्त नहीं होती, इसलिए भाव प्रेम ही सबसे महान है।
- देवता ना तो काष्ठ में विद्यमान है, ना पत्थर में और ना मूर्तियों में, देवता भाव प्रेम में विद्यमान है। इसलिए भाव प्रेम ही सब का कारण है।
- शांति के बराबर कोई तप नहीं, संतोष से बढ़कर दूसरा सुख नहीं, लालच से बड़ा कोई रोग नहीं और दया के बराबर कोई धर्म नहीं है।
- मनुष्य का गुण रूप को और सहनशीलता कुल को अलंकृत करती है। सिद्धि से विद्या की शोभा, और भोग से धन की शोभा होती है।
- पृथ्वी का जल शुद्ध होता है, पवित्रता स्त्री पवित्र होती है, कल्याण करने वाला राजा पवित्र होता है, और शांत पुरुष साधु पवित्र होता है।
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- चाहे बहुत बड़ा कुल क्यों ना हो परंतु मनुष्य के विद्या हीन होने पर व्यर्थ है, विद्वान का कुल यदि नीच है तो भी वह देवताओं द्वारा सम्मानित होता है।
- संसार में विद्वान की ही प्रशंसा होती है, विद्वान ही सब स्थान पर ऊंचा आसन प्राप्त करता है, विद्या से सब कुछ प्राप्त होता है और विद्या ही सब जगह पर पूजी जाती है।
- रूप यौवन और ऊंचा कुल सब कुछ होते हुए भी अगर विद्या से हीन है, तो वह पुरुष वैसा ही है जैसे बिना सुगन्ध का फूल। अर्थात वह कहीं भी शोभा नहीं पाता।
- सब औषधियों मैं गुरुच प्रधान है, और सब सुखों में भोजन मुख्य है, सब इंद्रियों में नेत्र प्रधान है, और सब अंगों में सिर श्रेष्ठ है।
- विद्यार्थी सेवक राहगीर भूख से पीड़ित भय से दुखी भंडारी रसोईया और द्वारपाल अगर यह सोए हुए हैं तो इन्हें जगा देना ही उचित रहता है।
- सांप, राजा, शेर, व बालक, पागल कुत्ता और मूर्ख आदमी अगर यह सोए हुए हैं तो इनको कभी नहीं जगाएं।
- जो ब्राह्मण धन पैदा करने के लिए वेद पढ़े, और दुखों से पीड़ित व्यक्ति के यहां भोजन करें, तो वह विषहीन सर्प की भांति कुछ नहीं कर सकता। अर्थात उसका जीवन व्यर्थ है।
- जिसके नष्ट होने से कोई भय नहीं ना प्रसन्न होने पर धन लाभ हो और जिसमें दंड देने व दया करने का समर्थ नहीं वह नाराज होकर भी क्या कर सकता है।
- विषहीन सांप को भी अपना फन बड़ा रखना चाहिए, क्योंकि विश रहे या ना रहे किंतु आडंबर से भी बड़ा फन डरावना होता है।
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- दरिद्रता के समय में धीरता अच्छी होती है, साफ सफाई से खराब कपड़ा भी अच्छा लगता है, कुवन्न भी गम ही अच्छा लगता है और नम्रता होने पर कुरूपता भी अच्छी लगती है।
- जिसके पास धन नहीं वह गिरा हुआ नहीं होता है, धनी वही है जो अपने निश्चय पर अटल है, किंतु विद्याधन से हीन पुरुष सब वस्तुओं से गिरा हुआ है।
- आंख खोल कर ही पैर आगे रखना चाहिए, पानी को छानकर पीना चाहिए, सदा मीठे वचन बोलना चाहिए, और मन से विचार करने के बाद ही कोई कार्य करना चाहिए।
- कवि क्या नहीं देख सकता, स्त्री क्या नहीं कर सकती, मंदिरा पीने वाला कौन सी कल्पना नहीं कर सकता और कौवा क्या नहीं खाता।
- लोभी का शत्रु भिखारी मूर्खों का शत्रु समझाने वाला व्याभिचारिणी स्त्री का शत्रु उसका पति और चोरों का शत्रु चंद्रमा है।
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- जिसके पास न विद्या है ना तप है न दान है ना शील है ना गुण है वह इस लोक में पृथ्वी का भार होकर मनुष्य रूप धारण कर मृगा की तरह घूम रहे हैं।
- चाहे कितना भी अच्छा उपदेश दो पर मूर्ख हृदय वाले के ऊपर वह असर नहीं करता। जैसे मलयागिरी के बांस में चंदन की गंध नहीं आ सकती है।
- जिसके पास बुद्धि है वह बली है जो निर्बुद्धि है उनके बल कहां है, जैसे वन में शेर सबसे बड़ा शक्तिशाली होता है पर एक गीदड़ के द्वारा मारा गया।
- चावल से दस गुना गेहूं का आटा, आटा से दस गुना दूध दूध से दस गुना मास, मास से दस गुना घी लाभदायक होता है।
- दान देना, मीठा बोलना, धीरता और उचित का ज्ञान, यह सब अभ्यास से नहीं मिलता, बल्कि यह स्वाभाविक गुण होता है।
- जो अपने वर्ग को छोड़कर दूसरे वर्ग का आश्रय लेता है वह वैसे ही नष्ट हो जाता है जैसे राजा अधर्म करने से नष्ट हो जाता है।
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यह कहानी पढ़ने के बाद सफलता आपके कदम चूमेगी।
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