inspirational stories of men women india in hindi। भारत के पुरुषों और महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियाँ।
रोते हुए आते हैं सब हंसता हुआ जो जायेगा, वो मुकद्दर का सिकंदर कहलाएगा। यह बात 100% सच है, क्योंकि हंसी न केवल चेहरे की सोभा बढ़ाती है, बल्कि देखने वालों को भी अच्छी लगती है। इसलिए खुश रहें।
क्योंकि आपके मन में यदि आशा है, उत्साह है, तो मुस्कुराहट भी उतनी ही जिंदादिली से होती है। कहते हैं यदि आप हंसते हुए जाओगे, तो सभी काम सही होने की सूचना लाओगे। यदि रोते हुए जाओगे, तो बुरी खबर ही लेकर आओगे।
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व्यक्तित्व तीन बातों से बनता है, शरीर,मन और आत्मा। इसलिए शरीर का स्वस्थ रहना जरूरी है। यदि शरीर साथ नहीं देगा तो आपकी मेहनत बेकार चली जाएगी। यही वजह है कि एक अच्छा प्रबंधक सब कुछ नियंत्रण में कर लेता है। लेकिन भीतर से खुद को नियंत्रित नहीं कर पाता।
इसलिए एक अच्छा प्रबंधक बनने के लिए विनिंग कांबिनेशन का अर्थ समझना होगा। क्योंकि विनिंग कांबिनेशन के द्वारा वरिष्ठ लोगों से अच्छे संबंध बनाए जा सकते हैं। और अपने अधीनस्थ व्यक्तियों से काम लिया जा सकता है।
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एक प्राचीन ग्रीक शब्द सिन जिसका सम्बन्ध तीरंदाजी से है। जिसका अर्थ है अपने निशाने से चूक जाना। इस बात से पता चलता है कि जब आप अपने तय किए गए लक्ष्य से भटक जाते हैं। तब अपने आप से प्रतिदिन सवाल करें क्या मैं सही हूं।
क्या में अपनी जिन्दगी उन कामों को करने में बिता रहा हूं, जो बाकई मेरे लिए अहमियत रखते हैं। फिर आपका खुद से तालमेल बना रहेगा। क्योंकि सफलता आपका बैंक बैलेंस नहीं है, बल्कि रोज जमा होने बाला पैसा है। जो बताता है कि आप अपनी जीवन यात्रा में आप कितने लोगों को प्रभावित कर सके।
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1.नितिन नोहरिया की प्रेरणादायक कहानी।
हाबर्ड बिजनेस स्कूल के मैनेजमेंट गुरु:- नितिन नोहरिया का जन्म 10 जनवरी 1950 में राजस्थान के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता क्रॉम्पटन ग्रीव्स में चेयरमैन थे। लेकिन जब नितिन नोहरिया ने आई.आई.टी. मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। तब उनके दिमाग में एक बात साफ थी कि उन्हें कैमिकल इंजीनियर नहीं बनना है।
क्योंकि आई.आई.टी. के खेल वातावरण ने उन्हें सपनों के आकाश में उड़ना सिखा दिया। इसलिए इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने मैसचुएट इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के स्लोन स्कूल ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट में दाखिला लिया।
वहां से सीधे उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर का पद संभाला। साथ ही स्कूल के 102 सालों के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। क्योंकि 2010 में स्कूल के मैनेजमेंट ने उन्हें हाबर्ड बिजनेस स्कूल का डीन बना दिया। जबकि वहां 200 प्रोफेसर और भी थे। लेकिन नहरिया ने लाभ, लोभ और व्यक्तिगत हितों पर आधारित अमेरिकन पूंजीवाद पर चोट की। और प्रबंधकीय पैसे में चिकित्सा और विधि पैसों की तरह पेशेवर हिंसाबदेही की मांग की।
तब उनके विचारों का लोहा पूरे अमेरिका ने माना और उन्हें डीन बना दिया। अब नितिन कहते हैं एम.बी.ए. डिग्री धारी को अपना करियर शुरू करते समय डॉक्टर और वकीलों की तरह एक शपथ लेनी चाहिए। ताकि वे अपने पैसे की जवाब देही और आचार संहिता के प्रति वफादार हैं।
उनका यह भी मानना है की प्रबंधकीय पेशों के लिए एक नियामक संस्था भी हो। जो भ्रष्ट,स्वार्थी, लालची निकम्मे और अनैतिक प्रबंधकों की डिग्री और लाइसेंस को रद्द कर सके। फिर स्कूल के हजारों छात्रों ने नितिन नोहरिया के विचारों का समर्थन किया।
इस बात से पता चलता है कि भारतीय मूल के लोग पश्चिमी दुनिया में अपनी सफलता का परचम फहरा रहे हैं। और ब्राजील, अमेरिका, मेक्सिको जैसे देशों में व्यावसायिक क्षेत्र को नई दिशा दे रहे हैं। क्योंकि इकोनॉमिक्स टाइम्स ने लिखा है। उभरते हुए बाजारों का नेतृत्व अब भारतीय मूल के लोग कर रहे हैं। जो अमेरिकन कंपनियां के लिए फायदे का सौदा है।
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कहते हैं की उम्मीद पर दुनिया कायम है यानी उम्मीद आपको बेहतर महसूस कराती है। लेकिन बेहतर महसूस करना ही काफी नहीं है। क्योंकि बड़ी सफलता पाने के लिए उम्मीद को पंख लगाने पड़ते हैं। ताकि वह आपको मंजिल की ओर उड़ा कर ले जाए। इसलिए उम्मीदों को पंख लगाइए और पक्षियों की तरह उड़ना सीखिए। आइए सीखते हैं एक भारतीय महिला से जिसने करोड़ो लोगों में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
2.आशा भोंसले की सफलता की कहानी।
नया काम करने की ललक से बनी गायिका:- आशा भोंसले का जन्म 8 सितम्बर 1933 को संधाली के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होंने 10 साल की उम्र में गाना शुरू किया और पहला सोलो गाना 11 साल की उम्र में गाया।
जब वे 16 साल की थीं तब उन्होंने अपने सचिव गणपतराव भोंसले से शादी की। जो उनसे पन्द्रह साल बड़े थे। इसलिए लता मंगेशकर को वह शादी पसंद नहीं थी, जिसकी वजह से दोनों बहनों में बोलचाल बन्द हो गया। फिर 12 साल बाद आशा भोंसले का अपने पति से झगड़ा हो गया और पति का घर छोड़ दिया, तब दो बच्चे उनकी गोद में थे और एक गर्भ में था।
उसके बाद आशा ने कड़ी मेहनत की क्योंकि उस दौर में शमशाद बेगम, गीता दत्त और लता मंगेशकर का राज था। वह गायिका जो गीत ठुकरा देती थीं वही आशा भोंसले को मिलते थे। लेकिन हेलन के गानों पर उनकी आवाज खूब जलती थी। इसलिए कुछ ही सालों में वे कैबरे-गीतों की सरताज बन गई।
फिर सन 1980 में उन्होंने संगीतकार राहुल देव बर्मन से शादी की। उस जोड़ी ने अनेक यादगार गाने दिए और विमल राय, राज कपूर, और बी आर चोपड़ा, जैसे दिग्गजों की फिल्मों के लिए गाने गाए। लेकिन उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला मुजफ्फर अली की फिल्म उमराव जान के लिए।
क्योंकि आशा वर्सेटाइल गायिका है और विदेशी गायकों के साथ भी गा चुकी हैं। उन्होंने अपनी सफलता का रहस्य बताते हुए कहा था। मैंने समय की कीमत समझी और अवसर को सफलता में बदलने की कोशिश की तब इस मुकाम तक पहुंची हूं। इसलिए मेरी उम्र को ना देखें बल्कि मेरे गाए हुए गीतों को सुने।
मेहनत और उत्साह से लबरेज आशा को हर तरह के गाने पसंद हैं। उन्होंने अपने दादा की उम्र के संगीतकारों के साथ भी काम किया है। और अपने पोतों की उम्र वालों के साथ भी। अब दुबई, दोहा, अबू धाबी, और कुवैत में उनके रेस्टोरेंट हैं।
अब रसेल के साथ भी आशा भोंसले 40 और रेस्टोरेंट खोलने जा रही हैं क्योंकि वह स्वयं लाजवाब कुक है बिरयानी, पाया करी, गोवन फिश करी, दाल आदि बनाने में एक्सपर्ट है इसलिए वे शेफ को खुद ट्रेनिंग देती है।
3.विशाल भारद्वाज की success story।
विशाल भारद्वाज का जन्म 4 अगस्त 1960 में बिजनौर के एक छोटे से कस्बे चांदपुर में हुआ था। तब उनके पिता राम भारद्वाज मेरठ में गन्ना विभाग में निरीक्षक के पद पर तैनात थे। सरकारी नौकरी में होने के बाद भी उन्हें साहित्य और संगीत का शौक था। वही शौक विशाल भारद्वाज के अंदर भी आ गया जो उन्हें मुंबई ले आया।
बाद में वे मशहूर संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और उषा खन्ना के करीब आए। उन संगीतकारों ने विशाल की कद्र की और फिल्म याद, कसम, तथा पत्थर के सनम, जैसी फिल्मों में गीत लिखने का मौका दिया।
1983 में अचानक उनके पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई। तब उनके बड़े भाई मुंबई में फिल्म व्यवसाय से जुड़ चुके थे। परंतु कुछ समय बाद उनकी भी मौत हो गई।
अचानक मिले इन दो सदमों ने विशाल को तोड़ कर रख दिया था। उसके बाद में दिल्ली में साथ पढ़ने वाली और संगीत की जानकार रेखा का साथ मिला जो होटल ओबेरॉय में गाना गाती थी। उसने विशाल को सी.बी.एस. कंपनी में मैनेजर पद पर काम दिलवाया। जहां उनकी मुलाकात फिल्मकार और गीतकार गुलजार से हो गई।
गुलजार ने उनकी प्रतिभा को परखा और टीवी धारावाहिक दाने अनार के में संगीत देने का अवसर दिलवा दिया। उसके बाद विशाल ने कहा था कि जब आप चीजों को बारीकी से सोचेंगे तो उस दिशा में ज्यादा जान पाएंगे। फिर आपके दिमाग में नए आइडिया आने शुरू हो जाएंगे।
जब उन्होंने अपनी सहपाठी रेखा से 1991 में प्रेम विवाह किया तो कामयाबी उनके कदम चूमने लगी। और 1996 में आई गुलजार की फिल्म माचिस से वे संगीतकार के रूप में स्थापित हो गए। उसके बाद चाची 420, गॉड मदर, हू तू तू,में उन्होंने रेखा के साथ संगीत दिया। और फिल्म मकड़ी से उन्होंने निर्देशक की दुनिया में कदम रखा।
फिल्म मकबूल से वे बिकाऊ निर्देशक बन गए। बाद में उन्होंने द ब्लू अंब्रेला, ओमकारा, कमीनें और इश्किया जैसी फिल्मों का निर्देशन किया और बॉलीवुड के सबसे अधिक पारिश्रमिक लेने वाले निर्देशक बन गए।
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इंसान बहुत अक्लमंद प्राणी है। वह भले बुरे की फिक्र किए बिना ही खुद ही फेश वैल्यू आंकता रहता है। क्योंकि पूजा पाठ के बल पर वह सोचता है कि मेरा खुदा या मेरा भगवान मेरे पास है। लेकिन दर्द जब हद पार कर जाता है, तब उसे पता चलता है कि मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। इस बात से पता चलता है कि दुनियां का सबसे मुस्किल काम है, खुद पर विश्वास करना। इसलिए इंसान हमेशा खुद को धोखे में रखता है।
4.अनुपमा राग शौक ने बना दिया गायिका।
शालू के ठुमके गीत से धमाल मचाने वाली गायिका:- अनुपमा राग का जन्म 22 सितम्बर 1968 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ था। संगीत का शौक उन्हें बचपन से ही था। इसलिए भरतखंडे यूनिवर्सिटी से संगीत में विशारद किया और सहेलियों के बीच रंग जमाने लगीं।
लेकिन संगीत को कैरियर बनाने के बजाय उन्होंने सरकारी नौकरी को चुना। क्योंकि उनके घर का माहौल ही कुछ ऐसा था। पिता आई.पी.एस.अधिकारी थे और परिवार के दूसरे लोग भी सरकारी नौकरियों में ऊंचे पद पर तैनात थे।
इसलिए उन्होंने पढ़ाई और शौक दोनों को अलग रखा, परंतु संगीत उनका बचपन का शौक था। यही वजह थी कि सरकारी सेवा में आने के बाद भी उनका दिल प्लेबैक सिंगिंग के लिए भटकता रहता था। इसलिए जब उन्हें शीला की जवानी हो गई पुरानी अब तो चर्चा है शालू के ठुमके गाने का ऑफर मिला तब धमाल मचा दिया।
अब वे बॉलीवुड की सैक्सी आवाज वाली गायिका के रुप में पहचानी जाती हैं। जबकि अनुपमा उत्तर प्रदेश में असिस्टेंट कमिश्नर सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट स्टेट के पद पर सेवारत हैं। इतने ऊंचे पद की जिम्मेदारी के बाद भी संगीत के लिए समय निकाल लेती हैं। उनका एक छोटा बेटा भी है जिसकी जिम्मेदारी वे ऑफिस जाने से पहले निपटाती है।
उनका परिवार ग्लैमर से काफी दूर है। क्योंकि अनुपमा के पति अनुराग सिंह युवा राजनीतिज्ञ हैं। और उनकी मां सुशीला सरोज मोहन लालगंज लखनऊ से सांसद हैं। लेकिन जब अनुपमा ने फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग करने की बात अपने पति को बताई तो उन्होंने स्वीकृति दे दी।
फिर उनका पहला म्यूजिक एल्बम अश रिलीज हुआ। इसके गीतकार फैज अनवर थे लेकिन अनुपम आशा भोंसले को पसंद करती हैं और लता मंगेशकर उनकी फेवरेट है इसलिए वे दोनों तरह के गीत गाना पसंद करती हैं।
बे खुद कहती हैं मुझे सॉफ्ट म्यूजिक पसंद है। लेकिन जब शीला के ठुमके गीत का ऑफर मिला तो मैंने उसे चुनौती के रूप में लिया। इसलिए वह गीत लोगों को खूब पसंद आ रहा है। अब अनुपमा के पास कई गानों के ऑफर आते रहते हैं जिसकी वे निर्माताओं से मुंह मांगी कीमत लेती हैं।