6 Indian bollywood actor success story।6 भारतीय बॉलीवुड actors की सफलता की कहानी।2024

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6 Indian bollywood actor success story। 6 भारतीय बॉलीवुड actors की सफलता की कहानी।2024

  1. आमिर खान।
  2. ओमपुरी।
  3. अमिताभ बच्चन।
  4. जॉनी लीवर।
  5. अनुपम खैर।
  6. दिलीप कुमार।

आमिर खान की success story। कैसे बने पढ़ाई में जीरो और फिल्मों में सुपर हीरो।

आमिर खान का जन्म 14 मार्च 1965 को बांद्रा मुंबई के होली फैमिली हॉस्पिटल में हुआ था। उनके पिता ताहिर हुसैन जाने-माने निर्माता थे। चाचा नासिर हुसैन पहले से ही निर्माता निर्देशक और अभिनेता बन चुके थे

कहते हैं की जन्म से पहले ही उनके पिता ताहिर हुसैन ने उनका नाम आमिर खान रख दिया था। आमिर का अर्थ होता है, नेतृत्व करने वाला। फिर आमिर के छोटे भाई फैसल खान और बहन फरहत खान तथा निखत खान का जन्म हुआ। परंतु आमिर बचपन से ही बातूनी शरारती और रोग झाड़ने वाले इंसान थे।

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वे बड़े-बड़े सपने देखे थे उन्हें कैसे हासिल करना है नहीं पता। फिर उन्होंने विले पार्ले स्थित एम. एन. कॉलेज में दाखिला लिया। जहां उन्हें होमवर्क पूरा न करने पर आए दिन मुर्गा बनना पड़ता और मार भी खानी पड़ती थी इसलिए जैसे तैसे वे 12वीं तक ही पढ़ पाए। तब उन्हें कॉमिक्स पढ़ने का बड़ा शौक था।

कुछ समय बाद ड्रामा और स्पोर्ट्स में भी उनका शौक बन गया। टेनिस और क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी थे। और टेनिस में तो महाराष्ट्र स्टेट चैंपियन भी कर चुके हैं। परंतु वे हीरो बनना चाहते थे और कहते थे लोगों को इसलिए याद नहीं किया जाता कि वह कितनी बार असफल हुए। बल्कि इसलिए याद किया जाता कि वह कितनी बार सफल हुए।

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तब उनके पिता ने सलाह दी कि अपने चाचा नासिर हुसैन के असिस्टेंट बनकर एक्टिंग और फिल्म मेकिंग का अध्ययन करो। फिर आमिर खान ने मेहनत करना बंद नहीं किया क्योंकि उनके सामने एक सीधा लक्ष्य था। और इसी तरह अपनी कड़ी मेहनत से उन्होंने हीरो बनने का सपना भी सरकार कर लिया। उसके बाद उनके करियर में काफी उतार-चढ़ाव आए परंतु होली फिल्म से आमिर खान लोगों के दिलों में छा गए। और अपने हीरो बनने के सपने को साकार कर दिया।

कुछ साल पहले उन्होंने आमिर खान प्रोडक्शन की स्थापना की लगान फिल्म का निर्माण किया, और सफल निर्माता बन गए। उसके बाद तारे ज़मीन पर और जाने तू या जाने ना भी सुपरहिट हो गई। अब आमिर एक्टिंग निर्माण निर्देशन के अलावा फिल्मों में गीत भी गाते हैं और कयामत से कयामत तक तथा हम हैं राही प्यार के फिल्म की स्क्रिप्ट में सहायक लेखक की भूमिका भी निभा चुके हैं।

दूसरों पर भरोसा और खुद पर संयम।

दूसरों पर भरोसा कीजिए खुद पर संयम रखिए। क्योंकि भरोसे का अर्थ है भगवान से जुड़ना और संयम का अर्थ है तन मन धन के प्रति नैतिक प्रतिबद्धता। यदि आप तन से कमजोर हैं, तो मन और धन लाभ नहीं पहुंचा पाएंगे, मन कमजोर है, तो तन और धन बोझ बन जाएंगे, फिर आपका जीवन गीली लकड़ी से उठ रहे धुएं जैसा हो जाएगा। कहावत है कि असंतुलित जीवन गीली लकड़ी की तरह है। इससे धुआं ही उठेगा, इसलिए अपने अंदर भरोसा और संयम की अग्नि प्रज्वलित कीजिए यह रिस्क लेने में काम आएगी फिर जितना रिस्क फैक्टर मजबूत होगा कामयाबी भी उतनी बड़ी मिलेगी।

ओमपुरी की success story। सफल अभिनेता।

ओमपुरी का जन्म 18 अक्टूबर 1950 में अम्बाला के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता जो भी काम करते थे उससे सिर्फ दो वक्त का खाना ही चल पाता था। फिर बचपन में ही ओमपुरी को उनके मामा अपने साथ अपने गांव सनौर ले गए और उनकी देखभाल करने लगे।

ओमपुरी का खाली समय में घूमने का स्थान।

उन दिनों ओमपुरी में अवलोकन करने की गजब की क्षमता थी। वे अपने खाली समय में बाजार और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर घूमते रहते थे और एकान्त स्थान पर खड़े होकर लोगों को देखते रहते थे। फिर घर आकर अपने मामा को उन लोगों की नकल करके दिखाते थे। मामा भी उनकी हरकतों का खूब आनन्द लेते थे।

ओमपुरी ने किया रिश्तेदारों को प्रभावित।

एक बार कुछ रिश्तेदार उनके घर आए तो उनके मामा ने ओमपुरी की हरकतों के बारे में बताया फिर ओम पुरी से वही नकल करके दिखाने को कहा ओमपुरी ने तुरंत करके दिखा दिया। जिससे रिश्तेदार काफी प्रभावित हुए और बोले तुम बड़े होकर एक्टर बनना क्योंकि तुम्हारे अंदर ऐसी प्रतिभा है।

फिर दिल्ली के नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग का कोर्स करके जब बॉम्बे आए, तब वे सबसे पहले सांता क्रूज स्थित उस घर में गए जहां नसीरुद्दीन शाह पेइंग गेस्ट के रूप में रहते थे । उस जगह को मार्टिन विला कहा जाता था और वह सेक्रेड हार्ट चर्च के पीछे था।

फिल्मों में काम नहीं मिला तो बन गए एक्टिंग स्कूल में टीचर।

मुंबई में पहला काम उन्हें गोविंद निहलानी ने दिया वह एक ऐड फिल्म थी जिसमें ओम ने फैक्ट्री कर्मचारी की भूमिका निभाता कौन है मन के रूप में ₹800 मिले थे। फिर 1977 में उन्होंने गोली फिल्म में काम किया जिसका निर्देशन गिरीश कर्नाड ने किया था परंतु उसे फिल्म से ओमपुरी लोकप्रिय नहीं हो पाए तब बी रोशन तनेजा के पास गए और उनके एक्टिंग स्कूल में शिक्षक बन गए वहां उन्होंने अनिल कपूर गुलशन ग्रोवर मजहर खान सुरेंद्र पाल और मदन जैन जैसे लोगों को एक्टिंग करना सिखाया।

ओमपुरी का अपना विचार।

तब ओमपुरी कहते थे मैं कभी यह नहीं सोचता कि मैं हीरो क्यों नहीं बना बल्कि यह सोचा कि मैं ओमपुरी क्यों नहीं बना और मुझे ओमपुरी बनने के लिए क्या करना होगा मैं जानता था कि सफलता मेरी उपलब्धियां में दिखाई नहीं देगी बल्कि मेरी कठिन परिस्थितियों से पता चलेगी जो मै पार करके आया हूं। इसलिए आज में इस मुकाम तक पहुंचने में सफल हो पाया हूं।

ओमपुरी की एक प्रेरणा।

जितना आप चबा सकते हैं उससे बड़ा कौर मुंह में डालें। क्योंकि जहां खतरा होता है वहां अवसर भी मंडराता है जहां अवसर होता है वहां खतरा भी मंडराता है। इसलिए बड़े जहाज को हमेशा गहरे पानी की जरूरत होती है। यदि वह जोखिम नहीं लेगा तो आगे भी नहीं बढ़ पाएगा। यानी जब तक आप मधुमक्खियां के छत्ते में प्रवेश नहीं करेगें, तब तक आप शहर नहीं पा सकते।

अमिताभ बच्चन की success story। बुढ़ापे में भी नया काम करने का जूनून।

अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को इलाहाबाद में डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन के यहां हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद में हुई थी और सीनियर कैंब्रिज यानी इंटरमीडिएट नैनीताल के सारे बोर्ड कॉलेज से किया था उसके बाद दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से बीएससी की और कोलकाता में सुपरवाइजर के पद पर कॉल इंडिया कंपनी में नौकरी करने लगे लेकिन नौकरी में  मन नहीं लगा फिर भी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने मुंबई आ गए क्योंकि उनके अंदर हीरो बनने का जुनून पैदा हो चुका था।

मुंबई आकर उन्होंने कई रातें फुटपाथ पर सोकर गुजारी फिर ए.के. अब्बास ने उन्हें अपनी फिल्म सात हिंदुस्तानी में सातवें हिंदुस्तानी का रोल दिया। लेकिन फिल्म फ्लॉप हो गई उसके बाद आई रेशमा और शेरा जिसमें अमिताभ की भूमिका हीरो के छोटे भाई की थी। परंतु वह फिल्म भी फ्लॉप हो गई। फिल्में फ्लॉप होने का दौर शुरू हो गया, जो लगभग 3 साल तक चला लेकिन जब प्रकाश मेहरा ने उन्हें जंजीर में उन्हें हीरो का रोल करने का अवसर दिया तब अमिताभ बच्चन ने उस अवसर को अपनी प्रतिभा से सफलता में बदल दिया और फिल्म हिट हो गई।

उसके बाद में अमिताभ बच्चन ने ‘आनंद, दीवार, डॉन, अमर अकबर एंथनी, शोले, लावारिस, मुकद्दर का सिकंदर, नसीब, बागवान, तथा बंटी और बबली जैसी सुपरहिट फिल्में दी और बॉलीवुड की सबसे महंगे सुपरस्टार बन गए। तब उनके बारे में कहा जाता था अमिताभ के अंदर प्रतिभा का भंडार छिपा है जो कभी खत्म नहीं होता।

फिर अमिताभ बच्चन ने कहा था प्रतिभा हर व्यक्ति में होती है। लेकिन उसे बाहर निकालने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। मेहनत करनी होती है तब प्रतिभा अपना कमाल दिखा पाती है। 

आज अमिताभ बच्चन विश्व के उन लोगों में गिने जाते हैं जो अपनी लगन, मेहनत और जुनून से शून्य से शिखर तक पहुंचे, और युवा पीढ़ी के आइकॉन बने। उम्र के बढ़ते पड़ाव में भी उन्होंने बुड्ढा होगा तेरा बाप जैसी फिल्मों में एक्शन सीन किए हैं इसलिए वे 21वीं साड़ी के महानायक कहलाते हैं।

अमिताभ बच्चन जी की एक प्रेरणा।

सुरक्षित तरीके से खेलना दुनिया का सबसे असुरक्षित काम है। इसलिए आपको अपने अंदर परिवर्तन लाना होगा। और वह करना होगा जो आपसे इश्वर करवाना चाहता है। लेकिन जो लोग परिवर्तन से घबराते हैं। वह सबसे ज्यादा दुखी रहते हैं। क्योंकि आसान रास्ते कहीं नहीं ले जा सकते। यानी सुनहरी भूमि तक पहुंचने के लिए आपको बियाबान जंगल से गुजरना ही पड़ेगा। और रास्ते में आईं बढ़ाओ समस्याओं और चुनौतियों का मुकाबला करना ही पड़ेगा।

जॉनी लीवर की success story। जिन्दगी के दर्द ने हंसना सिखाया।

जॉनी लीवर उर्फ जॉन राव जनुमाला का जन्म 7 जनवरी 1950 को आंध्रप्रदेश के एक छोटे से गांव प्रकासम में हुआ था। उनके पिता ईसाई थे और मुंबई में हिंदुस्तान लीवर में चपरासी की नौकरी करते थे। इसलिए जॉनी लीवर का बचपन गरीबी में बिता। लेकिन उन्होंने अपने हुनर के बूते यह साबित कर दिया कि इरादा अगर मजबूत हो तो नामुमकिन चीज को भी मुमकिन किया जा सकता है।

जॉनी लीवर की जिन्दगी का सफर।

जॉनी लीवर खुद बताते हैं मैंने बचपन नहीं जिया। पिताजी अपनी कमाई शराब में झोंक देते थे। और घर आकर मां को पीटते थे, ऐसे में मेरी पढ़ाई लिखाई भी नहीं हो पाई। फिर मैं छोटी उम्र में ही पैसे कमाने के लिए शराब के ठेके पर काम करने लगा। लोगों को चखना परोसते हुए कब शराब परोसने लगा पता ही नहीं चला।

गरीबी और नाकामी की जिंदगी से जॉनी लीवर ऊब चुके थे। इसलिए एक बार उन्होंने रेल की पटरी पर लेट कर जान देने की कोशिश की परंतु जब ट्रेन सामने आई तो उनकी आंखों के सामने मासूम बहनों के चेहरे आ गए।

जॉन राव जनुमाला से बने जॉनी लीवर।

उस दिन जॉनी लीवर की जान तो बच गई। लेकिन रास्ता तब भी नहीं मिला। फिर बड़े-बड़े एक्टर्स की मिमिक्री करते हुए सड़कों पर पेन बेचने लगे। तब उनकी कमाई कुछ बढ़ गई थी। बाद में पिता की मौत के बाद उनकी जगह हिंदुस्तान लीवर में काम मिल गया। वहां उनकी मिमिक्री को सुनकर लोगों ने उनका नाम जॉनी लीवर रख दिया। क्योंकि वह अपनी कॉमेडी से स्टाफ के लोगों को हंसाने में सफल हो गए थे।

तब वे कहते थे, नौकरी मैंने अपने परिवार का पेट भरने के लिए की है। लेकिन मेरा सपना फिल्मों में कॉमेडियन बनने का है। अब मुझे उस अवसर की तलाश है, जो मुझे फिल्मों में प्रवेश दिला सके।

उसके बाद उन्हें एक ऐसे शो में परफॉम करने का मौका मिला, जहां लगभग पूरी फिल्म इंडस्ट्री मौजूद थी। उस परफॉर्मेंस ने जॉनी लीवर को एक कॉमेडियन स्टार बना दिया जिसका उन्होंने सपना देखा था। अब जॉनी लीवर बॉलीवुड के उन कॉमेडियनों में गिने जाते हैं, जिनके नाम से लोग फिल्में देखते हैं।

जॉनी लीवर जी की एक प्रेरणा।

यदि आप भेड़ियों की संगति करते हैं तो गुर्राना ही सीखेंगे। यदि आप गरुणों के साथ रहते हैं तो शिखरों को छूना सीखेंगे। कहावत है, कि आईना आदमी का चेहरा दिखता है। मगर उसकी असली पहचान तो उसके द्वारा चुने गए दोस्तों से होती है। इसलिए जीवन के नियमों को जानिए। फिर उनमें से कुछ को तोड़िए, सीमाओं को मत मानिए क्योंकि अच्छे को अच्छा स्वीकार कर लेना कोई अच्छी बात नहीं है।

मेल्विन एवांस ने कहा था, कि भविष्य का निर्माण भी लोग करते हैं। जो यह जानते हैं की श्रेष्ठ चीजों का आना अभी बाकी है। और उन्हें लाने में वे स्वयं मदद करेंगे फिर वे संदेह करने के लिए नहीं रुकते, क्योंकि उनके पास रुकने के लिए समय नहीं होता।

अनुपम खैर की success story। निराशा से मिला खुश रहने का सिद्धांत।

अनुपम खेर का जन्म 7 मार्च 1955 में शिमला में हुआ था। उनका परिवार मध्यवर्गीय था। उनके पिता पुष्कर नाथ खेर वन विभाग में क्लर्क थे। और मम्मी दुलारी खेल घर का कामकाज संभालती थी। वह अपने छोटे भाई राजू के साथ एक बड़े परिवार में रहते थे। जहां चाचा, चाची, दादा, दादी, और दूसरे भाई बहन भी थे। सब मिलकर 11 लोगों का परिवार था।

उन दिनों अनुपम के पिता को सिर्फ 90रुपया महीना तनख्वाह मिलती थी। जिससे पूरे परिवार का खर्च चलता था। इसलिए अनुपम खेर को पैसे की तंगी रहती थी। लेकिन बचपन में उन्हें फिल्में देखने का बहुत शौक था। तब वे शिमला में लेडी इरविन स्कूल में पढ़ते थे। पढ़ते पढ़ते कब उन्हें मिमिक्री करने का शौक लग गया पता ही नहीं चला,फिर नाटकों में काम करने लगे।

10वीं क्लास में फेल होने पर मिली पिता की नसीहत।

नौवीं क्लास तक उनका जीवन बहुत अच्छा गुजरा। परंतु जब दसवीं में फेल हो गए तब उनके पिता ने कहा। तुम दसवीं में फेल हो गए हो क्या करोगे। मेरी मानो नाटकों में काम करना बंद कर दो। वरना बड़े होकर शिमला की सड़कों पर जूतियां चटकाते फिरोगे।

पिता से मिली नसीहत तो बदल दिया अपने आप को।

फिर अनुपम खेर ने पढ़ाई में दिल लगाना शुरू किया उन्हें अपने पिता से नसीहत मिल गई थी। लेकिन नाटकों में काम करना फिर भी नहीं छोड़ा क्योंकि उन्होंने फिल्म स्टारों की जीवनी पढ़ने के बाद तय कर लिया था। कि बड़े होकर फिल्मों में काम करना है। जैसी मनुष्य की सोच होती है वैसी ही प्रोग्रामिंग उसके मस्तिष्क में हो जाती है। फिर वह उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगता है।

मेहनत और लगन से बन गए बॉलीवुड फिल्मों के अभिनेता।

जब इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी हुई तब उन्होंने चंडीगढ़ से एक्टिंग का कोर्स किया। उसके बाद दिल्ली के राष्ट्रीय नाटक विद्यालय से एक्टिंग सीखी और मुंबई आ गए धीरे-धीरे उन्होंने फिल्मों में अपना स्थान बनाना शुरू किया।

अब अनुपम खेर बॉलीवुड के एक अभिनेता है और मुंबई आने वाले हर शख्स से कहते हैं। चाहे इंजीनियर बनो, डॉक्टर बनो, या फिर एक्टर बनो थोड़ी बहुत मुसीबत झेलने के लिए आपको तैयार रहना होगा। जो तकलीफ उठाकर भी अपना काम करता रहता है वही सफलता पाता है।

अनुपम खेर जी द्वारा दी गई एक प्रेरणा।

कल जो सफलता का सूत्र था, वह आप विफल हो चुका है। अब जो बीते कल के तौर तरीके अपनाएगा, वह आने वाले समय में व्यवहारिकता की जमीन पर पैर नहीं जमा पाएगा। कहावत है कि घर्षण के बिना हीरा नहीं दमकता। और अभ्यास के बिना आदमी नहीं चमकता। महान बनने के लिए परीक्षाओं से गुजरना जरूरी है। इसलिए ऊर्जावान रहो आपको दुनिया को जितना है।

दिलीप कुमार की success story। फल बेचकर बने बॉलीवुड के अभिनय सम्राट।

दिलीप कुमार उर्फ युसूफ खान का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पेशावर में फलों के सौदागर गुलाम अनवर खान के यहां हुआ था। वह अपने माता-पिता की पांचवी संतान थे, लेकिन 6 साल की उम्र में उनको मुंबई आना पड़ा। क्योंकि उनकी मां बीमार थी, और इलाज के लिए पूरे परिवार के साथ वहां आई थी। तब यूसुफ को मुंबई के बर्नेस स्कूल में दाखिला मिला। परंतु उनका मन पढ़ाई में कम और फुटबॉल में ज्यादा लगता था। लेकिन वे मुंबई में ज्यादा दिन नहीं टिक सके। मुंबई के मौसम में नमी थी जो उनकी मां को सूट नहीं करती थी। इसलिए उन्हें मुंबई से 100 मील दूर देवलाली जाना पड़ा।

दिलीप कुमार पर आई मुसीबत।

फिर जब देवलाली पर विश्व युद्ध के बादल मंडराने लगे तब ब्रिटिश सरकार ने वहां छावनी खड़ी कर दी। और आसपास के लोगों को घर खाली करने का हुक्म दे दिया। यूसुफ की मां पूरे परिवार के साथ एक बार फिर मुंबई शिफ्ट हो गई। लेकिन इस बार उन्हें पाली हिल्स में मकान मिला उस समय यूसुफ 14 साल के हो चुके थे। फिर 15 साल की उम्र में मुसीबत के दिन देखने पड़े क्योंकि दूसरा विश्व युद्ध छिड़ चुका था।

ट्रांसपोर्ट सिस्टम अस्त व्यस्त हो गया था जिसकी वजह से उनके पिता के थोक फल सप्लाई का काम फेल हो गया। उस समय वह फल बेचने में पिता का हाथ बटाते थे। यूसुफ को बीएससी की पढ़ाई छोड़कर 36रुपए महीने की पगार पर काम करना पड़ा। एक दिन मुंबई में उनकी मुलाकात देविका रानी से हो गई। तब देविका रानी मुंबई टॉकीज की मालकिन थी। लेकिन उन्हें नए और ऊर्जा से भरपूर चेहरे की जरूरत थी।

दिलीप कुमार की ऊर्जा से प्रभावित हुई देविका रानी।

वे यूसुफ को पठानी सूट में देखकर बहुत प्रभावित हुई। और बोली मैं तुम्हें अपनी आगामी फिल्म में लेना चाहती हूं, क्या तुम हीरो बनना चाहते हो। उन्होंने तुरंत हां कर दी फिर एस. गुरु स्वामी ने उनका इंटरव्यू लिया और 3 साल का करार साइन करा लिया। उसके बाद उनका नाम दिलीप कुमार रखा गया। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब उन्हें अभिनय की दुनिया का बेताज बादशाह माना जाता है। और मिसाल दी जाती है, कि दिलीप कुमार जैसा अभिनय कोई नहीं कर सकता।

दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खान के कुछ प्रेरणा दायक शब्द।

आदमी का सिर जितना बड़ा होता है, उसके जूते में उतनी ही खाली जगह रहती है। इसलिए घमंड मत करो यह गिरने की निशानी है। क्योंकि डाक का टिकट भी तभी काम का होता है जब उसे किसी लिफाफे पर  चिपका दिया जाता है।सोचो किसी घमंडी व्यक्ति ने कभी चांद सितारों को छुआ है। जब उत्तर मिल जाए तो आगे बढ़ो।

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लक्ष्य हासिल करें: सफ़लता प्राप्त करने का सिद्धान्त।

अपने ही भय पर जीत हासिल करने के लिए पढ़े चाणक्य के प्रेरणादयक उद्धवरण।

“कल्पना की कार्यशाला: इच्छाओं को वास्तविकता में बदलना।

चाणक्य के प्रेरणादयक थॉट्स हिन्दी में।

जिन्दगी में खुश कैसे रहे।