8 story of your life review full story। दिमाग की ताकत: मानसिक चित्रण से अपने सपनों को कैसे साकार करें।
मनोविज्ञान का एक नियम है। कि अगर आप अपने दिमाग में उस बात की छवि बना लेते हैं। जो आप बनना चाहते हैं, और फिर उस छवि को कॉपी देर तक वहां कायम रखते हैं। तो आप जल्द ही वैसे ही बन जाएंगे जैसा कि आपने सोचा था।…… (विलियम जेम्स)….
नए प्रयासों में आत्म-संकोच और नाकामी के डर का सामना कैसे करें। 8 story of your life review full story।
काफी समय पहले की बात है 30 वर्ष की एक विवाहित महिला थी जिसके दो बच्चे थे। उसका लालन-पालन एक ऐसे घर में हुआ था जहां उसे हर वक्त आलोचनाओं का सामना करना पड़ता था। और मां-बाप का उसके साथ व्यवहार भी अधिकांषता अच्छा नहीं होता था।
परिणाम यह हुआ कि उसमें हीनभावना और स्वाभिमान की कमी घर कर गई। और उसमें आत्मविश्वास नाम की भी कोई चीज नहीं थी। नकारात्मक सोच के साथ वह हर वक्त डरी सहमी सी भी रहती थी। वह बहुत ही शर्मीला थी और खुद को महत्वहीन समझती थी। उसे लगता था कि उसमें किसी भी काम के लायक प्रतिभा नहीं है।
एक दिन, वह कार से स्टोर जा रही थी, लाल बत्ती की अनदेखी करके एक कार आई और उसकी कार से भिड़ गई। उस कार की टक्कर से वह वेहोस हो गई, जब उसे होश आया तो उसने खुद को अस्पताल में पाया।
उसके सिर में चोट लगने के कारण उसकी याददाश्त जा चुकी थी। वह अब भी बोल तो सकती थी लेकिन अपनी गुजरी हुई जिन्दगी के बारे में उसे कुछ भी याद नहीं था। अब वह बिना याददाश्त बाली बनकर रह गई थी।
पहले डॉक्टर को लगा कि उसकी यह हालात कुछ दिन तक ही रहेगी। हफ्ते गुजरे लेकिन उसकी याददाश्त थी कि लौटने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसका पति और बच्चे हर रोज उससे मिलने आते थे।
लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं पाती थी, वह अपनी किस्म का एक ऐसा विशिष्ट मामला था। कि दूसरे डॉक्टर और विशेषज्ञ भी उसे देखने के लिए आने लगे वह उसका परीक्षण करते थे, और उससे उसका हाल-चाल पूछ लेते थे।
एक नई शुरुआत। 8 story of your life review full story।
आखिरकार बिल्कुल सपाट याददाश्त के साथ वह घर लौटी। अपने साथ क्या हुआ इसे जानने के लिए उसने चिकित्सा विज्ञान की किताबें पढ़कर, याददाश्त जाने के कारणों का अध्ययन शुरू किया। उसने इस क्षेत्र के विशेषज्ञों से मुलाकात और बातचीत की।
आखिरकार उसने अपनी हालत पर एक पेपर लिख डाला। कुछ ही दिन के बाद उसे अपना पेपर पढ़ने और उससे संबंधित सवालों के जवाब देने के लिए एक चिकित्सा सम्मेलन में शामिल होने का आमंत्रण मिला। उसे न्यूरोलॉजी संबंधी अपने अनुभव और विचार भी साझा करने थे।
इस दौरान एक चमत्कार ही हुआ। वह बिल्कुल ही अलग इंसान बन गई। अस्पताल और बाहर सब की चर्चा का केंद्र बन जाने से उसे पहली बार यह एहसास हुआ, कि वह कीमती है। उसका भी कुछ महत्व है, और उसका परिवार वाकई उसको बहुत चाहता है।
8 story of your life review full story।
चिकित्सा जगत का ध्यान अपनी ओर खिंचने और उन लोगों से मिली पहचान ने उसके आत्मविश्वास और खुद के बारे में सोच को और बेहतर बना दिया।
वह एक बेहद सकारात्मक आत्मविश्वास से परिपूर्ण खुले विचारों वाली महिला बन गई। जो की स्पष्ट वक्ता और जानकारी से परिपूर्ण थी। जिसकी एक वक्ता और अपने विषय की जानकारी के तौर पर चिकित्सा जगत में काफी मांग थी।
उसकी बचपन की सारी नकारात्मक यादें मिट चुकी थी। साथ ही उसमें वसी हीनभावना भी खत्म हो गई थी। वह एक बिल्कुल ही नई व्यक्ति बन चुकी थी। उसने अपनी सोच बदलकर अपनी पूरी जिंदगी बदल डाली।
एक कोरी प्लेट। 8 story of your life review full story।
स्कॉटिस दर्शनशास्त्री डेविड ह्यूम ने सबसे पहले टेब्युला रासा (tabula rasa) या कोरी प्लेट को लोगों के सामने रखा था। इस सिद्धांत के अनुसार हर इंसान जब दुनिया में आता है। तो उसके पास सोच या विचार के तौर पर कुछ भी नहीं होता। और वह हर चीज जो इंसान सोचता या महसूस करता है।
वह सब उसने यही पर अपने शिशु काल से सीखी होती है। कहने का मतलब है कि एक बच्चे का दिमाग एक कोरी प्लेट की तरह होता है। जिस पर उससे संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति और अनुभव अपनी छाप छोड़ देते हैं। बड़ा होने के दौरान वह जो कुछ भी सीखना या महसूस करता है, या अनुभव हासिल करता है।
वयस्क अवस्था एक तरह से इन्हीं सब बातों का निचोड़ होती है। जाहिर तौर पर वयस्क बाद में जो कुछ भी करता या बनता है, वो एक तरह से उसके बड़े होने की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है। जैसा कि एरिस्टोटल ने लिखा है। जिस किसी भी बात का प्रभाव पड़ता है, वही अभिव्यक्त होती है।
जहां तक इंसान में छिपी संभावनाओं को जानने के क्षेत्र की बात है तो निज धारणा (self concept) को 20वी सदी की सबसे बड़ी खोज कहा जा सकता है। इस सोच के मुताबिक हर इंसान जन्म से ही अपने बारे में एक धारणा कायम करता जाता है।
फिर आपकी अपने बारे में यही धारणा ही आपके अवचेतन के कंप्यूटर को संचालित करने वाला मास्टर प्रोग्राम बन जाती है। फिर यही तय करती है कि आप क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, महसूस करेंगे और क्या करेंगे यही वजह है कि आपकी जिंदगी में सारा बदलाव खुद के बारे में धारणा बदलने और अपने बारे में या अपनी दुनिया के बारे में सोचने का अंदाज बदलते ही दिखाई देने लगता है।
8 story of your life review full story।
हर बच्चे का जन्म खुद के बारे में बिना किसी धारणा के होता है। एक वयस्क के तौर पर आपकी हर सोच, मत, अनुभव, व्यवहार या किसी बात को आंकने की क्षमता, आपने बचपन से ही सीखी है। आज आप जो कुछ भी हैं वो उसी सोच या धारणा का परिणाम है, जिसे आपने हकीकत मान लिया है। वास्तविकता चाहे जो हो, जब आप किसी बात को सही मान लेते हैं, तो वही आपके लिए सच बन जाती है। आप वह नहीं है जो आप सोचते हैं कि आप हैं। लेकिन आप जो सोचते हैं आप वही बन जाते हैं।
पहले प्रभाव स्थायी होते हैं।
अगर आपको ऐसे माता-पिता मिले जिन्होंने आपको लगातार यह बताया कि आप कितने अच्छे हैं, जो आपसे प्यार करते थे, आपका समर्थन करते थे, और आप में यकीन करते थे, आपने चाहे जो किया या ना किया हो। ऐसे में आप इस विश्वास के साथ बड़े होंगे कि आप एक अच्छे और मूल्यवान व्यक्ति हैं।
3 वर्ष का होने तक यह विश्वास आप में घर कर जाएगा और दुनिया के साथ आपके रिश्ते का अहम हिस्सा बन जाएगा। उसके बाद चाहे जो हो जाए आपका खुद में ये यकीन कायम रहेगा। यही आपके लिए वास्तविकता बन जाएगी।
8 story of your life review full story।
अगर आपको ऐसे माता-पिता ने बड़ा किया जो यह नहीं जानते थे कि उनके कहे गए शब्द और उनका व्यवहार आप पर कितना असर डाल सकता है। तो वे आपको नियंत्रित या अनुशासित करने के लिए तीखी आलोचना असहमति या फिर शारीरिक या मानसिक सजा दे सकते हैं।
जब किसी को बचपन से ही निरंतर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है, तो वह इस निष्कर्ष पर पहुंच जाता है कि उसमें ही कोई खामी है। उसे यह समझ नहीं आता कि उसे क्यों लगातार आलोचना और सजा का सामना करना पड़ रहा है।
उसे यह एहसास भी हो जाता है, की माता-पिता उसके बारे में सही जानते हैं और वह इसी काबिल है वह यह महसूस करने लगता है कि उसकी कोई कीमत नहीं है और ना ही वह प्यार पाने के लायक है उसकी कोई उपयोगिता ही नहीं है इसलिए वह बिल्कुल महत्वहीन है।
किशोरावस्था और वयस्कपन में व्यक्तित्व संबंधी जितनी भी समस्या होती हैं। मनोवैज्ञानिकों की राय में इन सभी की जड़ प्यार की कमी है। जिस तरह से गुलाबों को बारिश की जरूरत होती ठीक वैसे ही बच्चों को प्यार की जरूरत होती है।
जब बच्चों को प्यार कम मिलता है तो वे असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। वे सोचते हैं, मैं किसी काबिल नहीं हूं। भीतर की इस बेचैनी को दूर करने के प्रयास में वे व्यवहार बदलने लगते हैं। कम प्यार मिलने का यही एहसास दुर्व्यवहार, व्यक्तित्व संबंधी समस्याओं, क्रोध के उफान अवसाद, असहायपन, महत्वाकांक्षा की कमी और लोगों व रिश्तों में समस्या के तौर पर उभर कर सामने आ जाता है।
जन्म के वक्त आप निडर होते हैं। 8 story of your life review full story।
गिरने और शोर को छोड़ दिया जाए तो बच्चे जन्म के वक्त डर के एहसास से अनजान होते हैं। डर के बारे में बाकी की पूरी जानकारी बच्चों को बड़े होने की प्रक्रिया के दौरान सिखानी पड़ती है।
बड़े होने के साथ ही दो खास किस्म के डर हम सभी में घर कर जाते हैं। नाकामी या नुकसान का डर और आलोचना या अस्वीकृति का डर। नाकामी का डर हमारे भीतर तब बैठ जाता है, जब कुछ भी नया या अलग करने पर हमें लगातार आलोचना और सजा का सामना करना पड़ता हो।
हमें चिल्लाकर यह बताया जाता है। नहीं वहां से दूर हटो। रुक जाओ। उसे रख दो। हमें डरा कर असुरक्षित कर देने के लिए शारीरिक सजा, प्यार की कमी के साथ-साथ चिल्लाना और आलोचना भी जिम्मेदार होते हैं।
8 story of your life review full story।
हम जल्द ही आए महसूस करने लग जाते हैं। कि किसी भी नए या अलग काम को करने के लिहाज से हम बहुत छोटे, बहुत कमजोर, नाकाबिल, अपर्याप्त, और असमर्थ हैं। इसी एहसास को हम इन शब्दों में व्यक्त करने लगते हैं।
मैं नहीं कर सकता, मैं नहीं कर सकता, मैं नहीं कर सकता, जब कभी भी हम किसी नए या चुनौती पूर्ण काम को करने के बारे में सोचते हैं। तो हमें घबराहट, कपकपी और पेट में मरोड़ जैसा एहसास होने लगता है।
हमारा डर ठीक उसी तरह का होता है। जैसा की पिटाई खाने का डर हम बार-बार बस यही कहते हैं, मैं नहीं कर सकता।
किशोरावस्था में नाकामी की मुख्य वजह नाकामी का डर ही होता है। बचपन में तीखी आलोचना के परिणाम स्वरुप हम बड़े होने पर भी प्रयासों में अपनी पूरी ताकत नहीं झोंकते। हम हर बात में खुद को वास्तविकता से कम ही आंकते हैं। पहले प्रयास से पूर्व ही हम प्रयास करना छोड़ देते हैं।
किसी चीज को पाने के लिए विलक्षण दिमाग के इस्तेमाल की बजाय हम अपनी तर्कशक्ति को यह साबित करने पर खर्च करने लगते हैं। कि हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते और हम जो चाहते हैं वह हमारे लिए क्यों असंभव है।
प्यार पाने का डर। 8 story of your life review full story।
हमारी तरक्की की राह का रोड़ा हमारे आत्मविश्वास को डिगाने वाला और हमारे सुखी जीवन की इच्छा को खत्म कर देने वाला दूसरा डर है, नकार दिए जाने का डर। नकारने की यह प्रक्रिया हमारी आलोचना के तौर पर सामने आती है। यह भावना हमारे भीतर बचपन से ही घर कर जाती है।
जब हम अपने माता-पिता की पसंद के खिलाफ कोई काम करने पर या फिर उनकी उम्मीद के मुताबिक काम नहीं करने पर नाराजगी जताते हैं। नाखुश कर देने के कारण वे इतने नाराज हो जाते हैं। कि हमें वह लाड़-दुलार नहीं देते जिसकी हमें बचपन में सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
8 story of your life review full story।
प्यार नहीं किए जाने या अकेलेपन के भय का बच्चे पर इतना गहरा असर होता है। कि वह ठीक वैसा ही व्यवहार करने लगता है, जो उसकी राय में उसके माता-पिता को पसंद आएगा। इसके साथ ही उसमें छिपा स्वाभाविक उत्साह और खास होने का एहसास खत्म हो जाता है।
एक ही सोच उसके दिलों दिमाग पर हावी हो जाती है। मुझे करना है, मुझे करना है, मुझे करना है, निष्कर्ष निकलता है मुझे वही करना है जो मम्मी पापा को मंजूर हो। वरना वह मुझे प्यार नहीं करेंगे और मैं बिल्कुल अकेला पड़ जाऊंगा।
सशर्त प्यार। 8 story of your life review full story।
सशर्त प्यार (एक इंसान द्वारा दूसरे को दिए जा सकने वाला सबसे अनमोल तोहफ़ा बिना शर्त के प्यार का ठीक उल्टा) हासिल करने वाला बच्चा जब बड़ा होता है, तो वह दूसरों के विचारों को लेकर बेहद संवेदनशील बन जाता है।
सबसे बुरी स्थिति तो यह होती है, कि वह उस किसी भी काम को करता ही नहीं है, जिसमें उसे किसी के असहमत होने की जरा भी आशंका हो। वह अपने जीवन में अब महत्वपूर्ण बन चुके लोगों- पत्नी, बॉस, दोस्त, खुद से बड़े को भी अपने माता-पिता के साथ बचपन के संबंधों के ही परिप्रेक्ष्य में देखा है।
ऐसे में उसका बस यही प्रयास रहता है। कि वह जो कुछ भी करें उससे उन सबकी स्वीकृति हो या कम से कम वह उसे अस्वीकृत न कर दें।
बचपन से ही मिली तीखी आलोचना के कारण उपजा नाकामी और नकारे जाने का भय ही, बड़े होने पर हमारे दुखी और चिंतित होने का मुख्य कारण होता है।
हम लगातार दो ही विचारों के बीच पिसते रहते हैं, “मैं नहीं कर सकता। “या फिर मुझे यह करना ही होगा!” सबसे बुरी स्थिति तो तब आती है जब हम सोचने लगते हैं, “मैं नहीं कर सकता, लेकिन मुझे करना पड़ेगा!” या “मुझे करना ही पड़ेगा, लेकिन मैं नहीं कर सकता!”
अधिकतर लोगों के लिए डर ही उनकी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा होता है। वह जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका प्रयास बस नाकामी और आलोचना को टालना ही होता है।
वे हर काम को करते वक्त लक्ष्य के लिए प्रयास करने की बजाय अपना ध्यान सुरक्षित तरीकों पर ही केंद्रित रखते हैं, वे मौकों के बजाय सुरक्षा चाहते हैं।
नाकामयाबी की डर को दोगुना करें।
लेखक आर्थर गार्डन ने आई.बी.एम. के संस्थापक थॉमस जे वॉटसन से एक बार पूछा की लेखक के तौर पर जल्दी से कामयाब होने के लिए उन्हें क्या करना होगा?
अमेरिकी कारोबारी जगत के धुरंधर वॉटसन ने इस सवाल का जवाब इन शब्दों में दिया: “अगर आप तेजी के साथ कामयाब होना चाहते हैं, तो आपको अपनी नाकामयाब होने की दर को भी दोगुना करना होगा। दरअसल कामयाबी तो नाकामयाबी के दूसरे सिरे पर रहती है।
हकीकत यह है कि आप जितने ज्यादा नाकाम होंगे, संभावना यही है की कामयाबी आपके उतने ही करीब होगी। आपकी नाकामयाबियों ने आपको कामयाबी हासिल करने के लिए तैयार कर दिया है।
8 story of your life review full story।
इसलिए अक्सर देखने को मिलता है, कि नाकामयाबियों की झड़ी के बाद कामयाबियों की झड़ी लग जाती है। यही वजह है कि जब कभी भी कुछ सूझ ना पड़े तो नाकामयाबी की दर को दोगुना कर दें।
आप जितनी नई बातों को करने की कोशिश करेंगे, आपके विजई होने की संभावना उतनी ही बढ़ जाएगी। किसी भी डर पर काबू पाने के लिए आपको उसी काम को करना चाहिए जिसमें आपको डर लग रहा हो, तब तक जब तक, कि आप पर डर का कोई भी प्रभाव न बचे।
अपने दिमाग़ की हार्ड ड्राइव। 8 story of your life review full story।
अपने बारे में आप जो कुछ भी जानते या महसूस करते हैं। वो आपके अपने विचारों के साथ आपकी निजी धारणा मैं व्यक्तित्व की हार्ड ड्राइव पर अंकित हो जाता है। उसके बाद अपने बारे में सोच ही आपके हर काम के प्रदर्शन के स्तर और उसके प्रभाव का निर्धारण करती है।
फिर अनुरूपता के नियम के कारण आपका बाहरी व्यवहार ठीक वैसा ही होता है, जैसा आप भीतर से महसूस करते हैं। यही वजह है कि आपकी जिंदगी में तमाम सुधारो का आगाज आपकी खुद के बारे में सोच में सुधार के साथ ही होता है।
8 story of your life review full story।
आपका एक संपूर्ण आत्म आंकलन होता है जो कि आपकी अपने और अपनी काबिलियतों के बारे में सारी सोच का निचोड़ होता है।
अपने बारे में आपकी धारणाओं के इस पुलिंदे में शामिल होते हैं, आपके उस वक्त तक के तमाम अनुभव, फैसले, कामयाबियां, नाकामियां, विचार, जानकारियां, भावनाएं और उस वक्त तक जिंदगी के बारे में आपका विचार।
आपका यह विचार ही यह तय करता है, कि आप अपने बारे में कैसे और क्या सोचते हैं। साथ ही यह आपके कुल जमा प्रदर्शन की समीक्षा भी कर देता है।
छोटी-मोटी सोच। 8 story of your life review full story।
इसके साथ ही अपने बारे में आपके पास बहुत सी छोटी-मोटी सोच भी होती है। ये छोटी मोटी निजी अवधारणा ही आपकी पूरी निजी छवि तैयार करती है। जीवन के हर क्षेत्र के लिए आपकी एक निजी सोच होती है।
जिसे आप महत्वपूर्ण समझते हैं, यही छोटी-मोटी सोच इस बात को तय करती है कि आप किस तरह सोचते हैं, महसूस करते हैं, और उस क्षेत्र में कैसा प्रदर्शन करते हैं।
8 story of your life review full story।
उदाहरण के लिए आपकी एक निजी सोच होती है कि आप कितने स्वस्थ या फिट हैं, और आपको कितना खाना पीना चाहिए, या कितनी वर्जिश करनी चाहिए। पुरुष है तो महिलाओं और महिला है तो पुरुषों के बीच लोकप्रियता को लेकर भी आपकी एक निजी सोच होती है।
पति-पत्नी या माता-पिता के प्रति दायित्व के निर्वाह या फिर दोस्तों के साथ संबंधों को लेकर भी आपकी निजी सोच होती है। आप कितने स्मार्ट हैं या फिर किसी चीज को आप कितनी जल्दी सीखते हैं। आप जो भी खेल खेलते हैं उसके बारे में या फिर कार चलाने में महारत हासिल करने सहित, हर गतिविधि को लेकर भी आपकी एक निजी सोच होती है।
8 story of your life review full story।
आप किसी काम को या उसके हर हिस्से को कितनी अच्छी तरह से करते हैं। इस बात को लेकर भी आपकी निजी सोच होती है। आपकी इस बात को लेकर भी निजी सोच होती है, कि आप कितना कमाते हैं।
और कितनी अच्छी तरह से पैसे को बचाकर उसका निवेश करते हैं। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संवेदनशील क्षेत्र होता है। हकीकत यह है कि आय कि अपनी निजी सोच से आप कभी भी बहुत ज्यादा या कम कमा ही नहीं सकते।
अगर आप ज्यादा कमाना ही चाहते हैं तो आपको अपनी आय और कमाने के बारे में निजी सोच को बदलना ही होगा।
Read more……
भारतीय महिलाओं के संघर्ष और सफ़लता की कहानी।
भारतीय बॉलीवुड actors की सफलता की कहानी।2024
खुद को नई ऊंचाइयों पर कैसे ले जाएं।